Tuesday, October 30, 2018

छोटी सी दुआ



एक छोटी सी दुआ भेजने के लिए 
खड़ी हूँ आतुर, हथेली से दिल को बांधे 
किसी जाने वाले दूत की राह तकते 
लेकिन बेढब हैं आज हवाओं के रुख
निष्ठुर, बेखौफ , विपरीत दिशा मैं
चल पड़ी , मेरी विनती की अवहेलना कर
कोई पंछी, कोई बादल , कहाँ हैं सब
क्यों आज किसी तक मेरी ह्रदय की थाप
मन की पीड़ा नहीं पहुँच रही
मेरे संगी साथी ,हर बात के भागी
मौन खड़े हैं ये पेड़, ये पौधे
क्यों आज मुझे कोई सांत्वना नहीं देते
रात के पहर आज साया भी विभाजित
हो कर चल रहा, मेरे दोनों तरफ
अविश्वसनीय ! मेरे ही दो साये
क्या कहना चाहते हैं मुझसे
शायद आज चित्त , देह से अलग
भाग रहा मनचाही दिशा मैं
एक साया मेरे मर्यादा मैं लिपटे
उठते - रुकते पैरों का है
और दूजा व्याकुल मन के
अनियंत्रित आवेशों का है
भोर के तारे , तू ही जल्दी निकल
ये रात बहुत गहन हो चली है
गोधूलि मैं निकलेगा कोई पथिक
तो भेजूंगी ये छोटी सी दुआ
मन की गठरी मैं बाँध
थोड़ी सी आशा, थोड़े से सपने
एक जरूरतमंद मुसाफिर के लिए

1 comment:

Rakesh Gambhir said...

एक साया मेरे मर्यादा में लिपटे उठते रुकते पैरों का है और दूजा मेरे अनियंत्रित मन के उठते आवेशों का है!
👌👌👌👌👌