Thursday, May 2, 2019

चुनावी बुखार






चुनावी बुखार है , नेताओं की बहार है 
कोई मौसमी बरसात की गीली लकड़ी पर उगे 
एक दूसरे के फन को दबाते कुकुरमुत्तों की तरह 
कोई सदियों पुराने पीपल के पेड़ पर चढ़े
अमावस की रात के भूतों की तरह
चार दिन की चांदनी है,
फिर अँधेरी रात में नाचते चोरों की बारात है।
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जीतने की गुहार है सब कमर कस तैयार हैं
कोई, यहाँ भी नकल मार, अंग्रेजी भाषण दे
इतराता है ,चाहे खुद अंगूठा छाप है
कोई भाड़े के टट्टुओं से मैदान में
भीड़ लगता है, आखिर चकाचोंध का व्यापार है
कुछ दिन की माथापच्ची है,
फिर पुश्त दर पुश्त चलने वाला भण्डार है।
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बस एक यही तो मौका है , फिर चौका और छक्का है
कोई पुराने पापो को रिश्वत के हैंडपम्प से धो कर चला है
उसका तौलिया अभी भी किसी गरीब के खून से गीला है
कोई मैली सोच की आस्तीन को नोटों के जैकेट से ढका है
बाप दादाओं की शान का सिक्का, आज फिर चल पड़ा है
चुनावी दंगल का मैदान है,
देशप्रेम की लंगोटी पहने यहाँ सब नंगे -भिकमंगे हैं।
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एक कुर्सी की बस चार टाँगे हैं और हज़ारों उमीदवार हैं
कोई, झूठे वादों की बैसाखी लिए सीना तान खड़ा है
बेखबर , टाँगे खींचने वाला, उसके ही पीछे खड़ा है
कोई दिखावे की सेवा को हाथ जोड़ गिड़गिड़ा रहा है
देखो, इन्ही दस्तानो के नीचे मेवा का कटोरा दबा है
गर्भस्त अभिमन्यु जैसी पहेली है,
अँधेरे मैं तीर चला जनता को भेदनी है।

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29 April 2019

2 comments:

Heart4Art22093 said...
This comment has been removed by the author.
Heart4Art22093 said...

फिर पुश्त दर पुश्त चलने वाला भण्डार है।

One-line description of 7decades old looters!

मार्मिक!!