Monday, June 7, 2010

किसी रोज़



ऐसा भी एक पल आये किसी रोज़  
जब तेरी सुबहें हो बस मेरी खातिर 
और मेरी शामें हो बस तेरी जानिब 
जब तेरी नज़रें उठे बस मेरे मुखातिब 
और मैं नज़र आऊं बस तेरे मुताबिक़ ........

ऐसा एक लम्हा भी गुज़रे किसी रोज़ 
जब तेरे ज़हन में  फ़क़त मेरा ख़याल हो 
और मेरे ज़ज़्बातों मैं बस तेरा बयान हो 
जब तेरे आगोश में मेरी बसर हो 
और मेरे पहलु में तेरा आगाज़ हो  ........
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ऐसा एक दौर भी आये किसी रोज़ 
जब तेरी ख्वाहिशों की इल्तिमास हो 
और मेरे इंतज़ार की इज़्तिराब हो 
जब  तेरे ख्वाबों की तामील हो 
और मेरी दुआएं खुदा को कबूल हो  ........


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