Wednesday, June 9, 2010

फिर भी



क्या हुआ जो इन राहों की दूरियां है 
क्या हुआ जो हालातों की मजबूरियां हैं 

क्या हुआ जो ये अकेली रातें हैं 
क्या हुआ जो ना  हो सकी मुलाकातें हैं 

क्या हुआ जो ये ज़माने के सितम हैं 
क्या हुआ जो ये आँखें नम हैं 

क्या हुआ जो अधूरी बातें हैं 
क्या हुआ जो यादों की बारातें हैं 

क्या हुआ जो ये होंठ निशब्द हैं 
क्या हुआ जो ये सपनो पे पैबंद हैं 

क्या हुआ जो ये कदम मायूस हैं 
क्या हुआ जो ये बाहें पशेमान हैं 

क्या हुआ जो ना  खुद पे इख्तियार है 
क्या हुआ जो ना ख़त्म होता इंतज़ार है 


फिर भी मुझे ये नाज़ है 
हर सूरत -ए -ऐतबार है 
कि  क़यामत क्यों ना  बरपा हो 
मैं उसकी हूँ वो मेरा है........ 



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