Thursday, June 6, 2013

निर्माण




 रचेता  ने  जब  इस 
 संसार की रचना  रची 
कुछ  सोच  कर ही उसने 
फिर जोड़ी  गढ़ी 
फूलों को रंगों से सजा 
 बादल  मैं पानी को भरा 
धरती को बना  जीवों का डेरा 
आकाश को दी  तारों की छटा 


नर  और  नारी  को बना 

नवजीवन का सूत्र   दिया 
पर जब भी इस  संरचना मैं 
उलट  फेर  होने लगे 
आधार  की नींव  हिल जाने से 
सब जर्जर  हो जाए 


दूध  और पानी  रहे तो 

मिल कर सोपान बने 
पानी और रंग मिले तो 
इन्द्रधनुष भी बन जाए 
पर खून की नदियाँ बहने से 
सब बदरंग हो जाए 


पानी और छाँव मिले  तो 

मुरझाया  पौधा  हरा बने 
खाद और सही देखभाल मिले तो 
फूल और पत् ते  भी उग जाएँ 
पर ठूंठ  बना के वृक्षों  को 
सब बंजर  ओर  जाए 


प्रेम और विश्वास  मिले तो 

जीवन हर्षाए 
साथ  और सहभाग मिले तो 
खुशियाँ बरसाये 
पर छल , द्वेष , अभिमान  रहे तो 
रिश्ते  धूमिल हो जाए 


जीव , पशु  , पक्षी , पौधे 

सब एक दूजे के पूरक हैं 
जो खुद को प्रबल समझ 
दूसरे का तिरस्कार  करे 
इश्वर  की इस रचना का 
अपमान करे, संहार करे 
तो संसार नष्ट हो जाए 


चलो आज  कुछ नया करे 

एक बीज डाल कर प्रेम का 
आशा की किरण से  रोशन कर 
स्नेह अमृत रस बरसा कर 
रिश्तों का निर्माण करें 
इश्वर  से क्षमा मांग कर 
नतमस्तक  हो जाएँ 

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