Friday, July 12, 2013

लता




बगिया   से   चौखट  तक फैली  सजीली लता  को 
फिर  उखाड़  कर सौंप दी  माली  ने  दूजे  हाथों मैं 
और विदा हो   गयी  एक  बेटी  ब्याह  कर 
अपनों  से  दूर  किसी  अनजाने  के   संग 


सींचा  था  जिसे  अपने  लहु  की  बूँद  बूँद  से 
ममता  की   छाव्  मैं पली  बढ़ी 
चल दी  एक  नए  परिवेश  मैं 
सकुची  , सहमी ,घबराई 


जिस अंगने  मैं सोलाह सावन बीते 
एक - एक  सेतु से  बंधी  आगे  बढ़ी 
कट गया  अब  हर बंधन 
फिर  से जुड़ने  नए रिश्तों  मैं 

कौन  जाने  रच बस पाएगी 
फिर से  नयी जमीन पर 
दूर  अपनी  मिट्टी  से 
फलेगी - फूलेगी और , या  मुरझा   जायेगी 


पिता की लाडली  , माँ की दुलारी 
आँगन की रौनक  और कुल का  दर्प 
आशीर्वाद  और  सीख के  साथ उठी डोली 
जिम्मेदारी  और सपनो  की कशमकश  लिए 


क्या  जुड़ पायेंगे  फिर से नए सेतु
क्या सर उठा  झूम  उठेगी देख ऊंचे गगन को 
या  धीरे धीरे कुम्हला  जायेगी 
बंजर ज़मीन के सूखे  पत्थरों  मैं 


क्या पूरे होंगे उसके  दुर्लभ स्वप्न 
क्या हर्ष  से महक उठेगी  बगिया  मैं 
या  झूल  जायेगी निष्प्राण  सी 
एक  एक कर झड़ते पीले पत्तों को मूक देखती 

No comments: