Monday, July 29, 2013

ग्रहण


बहुत  शौक  था  उसे 
ग्रहण   देखने  का 
दिन मैं  रात 
और  रात  मैं दिन 
सब  उलट  फेर हो  जाना 
जो  कोई  ना  करे 
बस वही  है  करना 
 सीधी  राहों  पर 
उलटे  पैरों चलना 
और उलट  गए 
ज़िन्दगी  के   मायने 
पूर्ण  ग्रहण  के 
असीम  अन्धकार  मैं 
चाँद  की  परछाई  को 
अपने  आगोश  मैं लिए 
घेरे  मैं घूमती 
आधी  अधूरी  चाँदनी  

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