Tuesday, August 23, 2016

वक़्त



तेरी रुखसती के बाद वक़्त रुक गया है 
ना  दिन याद ना  घंटे , ना महीने ना साल 
बस वो एक लम्हे पर अटकी हैं 
मेरे नज़रों की सुइयां 
उस दीवार पर   लटकी 
बंद घडी की तरह 
इस  इंतज़ार में 
की तुम पलट कर आ जाओ 
और मेरी बिखरी हुयी ज़िन्दगी को
 फिर से तरतीब -ए -सुकून आ जाए 

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