Thursday, August 4, 2016

जिद्दी








कल फिर उसे मैंने रंगे हाथों पकड़ा था
ऊपर के कमरे के स्टोर रूम से 
और मेरी आवाज़ सुनते ही
घबरा कर सरपट भागी थी
आज फिर वो दबे पाँव आयी है
मुझसे नज़रे चुराते चुराते
कमरे की अलमारी के बगल में
खिड़की के परदे के पीछे छुपी है
शायद इंतज़ार है एक मौके का
की कब मैं बाहर जाऊं
और वो चुपचाप ऊपर चढ़ जाए
.

हैरान हूँ मैं उसकी दिलेरी पर
मेरी इतनी कड़ी पहरेदारी के बावजूद
हर रोज़ किसी न किसी तरह
वो अपनी कोशिश में कामयाब हो जाती है
और अंदर आने के रास्ते ढूंढ निकालती है
ये उसकी लगन है, या न हार जाने की जिद
हर बार एक नयी उम्मीद लिए
अमरुद के पेड़ से छलांग लगाते हुए
किसी अधखुली खिड़की,
या दरवाजे की ओट से घर के अंदर
फिर दाखिल हो जाती है
.
मुंह में रुई का फाहा दबाये
एक घरोंदे को बंनाने का अरमान लिए
मुझे रोज़ यही प्रेरणा देने
की कोई कितने भी रोड़े अटकाता रहे
मंज़िल तक पहुँचने की चेष्टा में
प्रयासरत आगे बढ़ते ही रहे
बिना हार माने, दृढ़ निश्चय के साथ
चाहे रास्ते बदल बदल कर ही सही
एक रास्ता बंद हुआ तो क्या
कहीं कोई दूसरी खिड़की
या दरवाजा फिर खुला मिलेगा

.
वो मेरी गुरु , एक प्यारी सी
भूरी - काली, चंचल , जिद्दी गिलहरी ।

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