Tuesday, July 11, 2017

मसरूफ




दो हिस्सों में बटी ज़िन्दगी में
मसरूफियत बहुत है 
किसी की महकती यादों में 
किसी के दिए हुए घावों मैं 
हर रोज़ 
बेशकीमती पलों को मेहफ़ूज़ रखना है
और खुले जख्मो की खंदक को भरना है 
कभी कुछ सहेजना है
कभी कुछ सुधारना है
कुल मिला कर ये कहूं की
वक़्त के द्वारा 
की गयी तोड़ फोड़ से 
रख रखाव बहुत है 

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