Friday, August 11, 2017

माँ




माँ , तुम ही  हो जननी भी 
माँ , तुम ही हो सृष्टि भी 


अपने मातृत्व की धरती पर 
लहू से अपने सींच कर 
तुमने  हमे आकार दिया 
अपनी साँसों की गर्मी से 
प्राणो का संचार किया 

अपनी थाली के भोजन से 
हमे तृप्त  करने को तुमने 
खुद से पहले हमे खिलाया 
उदर हमारा भरने की खातिर 
अपना निवाला भी तज दिया 

ज्वर चढ़े , या बाधा कोई 
मेरी पीड़ा खुद पर झेल 
हर विपदा की ढाल बनी 
रात- रात भर जाग के स्वयं 
हमे चैन की लोरी दी 

अपने अंश के टुकड़े को 
दूजे घर मैं ब्याह दिया 
मुस्कान मैं आंसू छुपा के अपने 
किसी और के घर की बेटी को 
अपने अंग लगा लिया 

कभी प्रेम से, कभी डाँट  कर 
गुरु समान प्रखरता से 
मार्ग प्रशस्त कराया है 
अपने जीवन के अनुभव से 
हमको सबल बनाया है 


माँ, तुम ज्ञान की गंगा हो 
जीवन के हर रूप से तुमने 
परिचय हमे कराया है 
दुःख और सुख में सामंजस्य 
करना हमे सिखाया है 

माँ , तुम ही  हो जननी भी 
माँ , तुम ही हो सृष्टि भी 




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