Monday, April 9, 2018

निर्णय


















प्रेम और युद्ध के बीच में एक दिन छिड़ा हुआ था द्वंद 
कलयुग के इस प्रांगण में किसका पलड़ा भारी
प्रेम कहे मैं ऊपर सबसे ,युगो -युगों  वर्चस्व  है मेरा 
युद्ध कहे अब बात गयी, क्या करता है तू अभिमान  
प्रेम की बोली फीकी पड़ गयी, रिश्तों  में आ गयी दरार 
होने लगे अब बात बात में ,सबके बीच हैं वाद विवाद !


उन दोनों की बातें सुनकर ,याद आयी मुझे एक ही बात 
"रहिमन देखी बड़ेन  को, लघू न दीजे टारी 
जहॉ काम  आवे  सुई, कहा  करे तलवारी " 
क्या खूब सीख दी रहिमन जी ने, सुई और तलवार उदाहरण 
ना कोई छोटा , ना  कोई बड़ा , सबका अपना - अपना स्थान 
वक़्त -  ज़रुरत पर निर्भर  है, किसका होना है उपयोग !


राम को देखो, कृष्ण को देखो, स्नेहमयी  सारा संसार 
जब जब पीर बढ़ी अपनों पर ,  करना  पड़ा युद्ध संहार 
इतिहास उठा के देखो लो , कैसी गाथाएँ वीरों की हैं 
गीता के उपदेश भी देखो, प्रेम से बनते बिगड़े काम 
प्रेम और युद्ध के बीच भला हो सकती कैसे  प्रतिद्वंदता 
एक जोड़ करे एक काट करे, दोनों के अपने परिणाम !


प्रेम बड़ा ना  युद्ध बड़ा सबसे बड़ा वह निर्णय है 
परिस्थिति को देख भाल कर, विवेक पूर्ण मस्तिष्क से लेकर 
जहाँ प्रेम- प्यार  से बात बने  , सुलझे जब सारे उलझे काम 
तब छोटी छोटी बातों पर भी हम , क्यों चल देते सीना तान 
जब रस्ते सारे अवरुद्ध हो जाए  , सूझे नहीं  कोई और  उपाय 
तब देर नहीं बस हो जाए फिर , अंतिम निर्णय युद्ध के साथ !




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