Wednesday, June 27, 2018

आस


हम औरतें अमूमन एक जैसी ही होती है
और हमारी दास्ताने भी कमोबेश मिलती जुलती
हर घर मैं मिल जाएगी एक सीता , एक राधा 

एक अहिल्या या एक झाँसी की रानी
.
वो सीता जो स्वयं को अर्पित करके
ठगी सी खड़ी है ज़िन्दगी की राह मैं
ये सोचती कि कब ,कौन सा निर्णय गलत था
चुप चाप निशब्द अपने भाग्य को कोसती !
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वो राधा जो प्रेम के समुन्दर को लुटा कर
रीति खड़ी है, सूख चुके आंसुओं की पपड़ी झड़ाती
अपने कृष्ण के ज़िन्दगी के हर मोड़ पर सफल
होने के लिए, बिना पीछे मुड़े आगे बढ़ जाने के बाद !
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वो अहिल्या जो पाँव की ठोकरे खा कर
बुत खड़ी है, सब कुछ जानते समझते
सिर्फ अपनों की मान मर्यादाओं की खातिर
अपने अस्तित्व पर , धूल की परते चढाती !
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वो झाँसी की रानी जो जूझ रही है
हर रोज़ ज़िन्दगी के दोहरे मापदंडो के साथ
घर और बाहर के दुगने बोझ संभालते
सबकी कसौटियों की, तलवार के धार तले!
.
पुरुष प्रधान समाज में युगों युगों से
विज्ञानं की तरक्की के बावजूद
ऊपरी साजो सज्जा के आवरण में लिपटी
वही प्राचीन भारतीय नारी !
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टीवी सीरियल के चलने वाले लम्बे
धारावाहिक की कहानी की तरह
एक पात्र के छोड़ जाने के बाद
उसकी जगह लेकर, मुखौटे को लगाए !
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कहीं अपने वजूद के, जंग लगे ताले की
गुमनामी में चुप चाप चाबी तराशती
कहीं अपनी ख्वाहिशो को पूरी करने की
खातिर बेख़ौफ़ ,खंजरो के वार झेलती !
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हमे साँसों से ज्यादा हवा की ज़रुरत है !
हम रोटी से ज्यादा समय की भूख है !
हमे तन से ज्यादा मन की प्यास है !
हमे तकनीक से ज्यादा बदलाव की आस है !

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