Wednesday, June 27, 2018

मात - पिता



(माता पिता को समिर्पत उनकी शादी की पचासवीं वर्षगाँठ पर- )

माता और पिता की जोड़ी 
ईश्वर ने क्या खूब गढ़ी 
.
पिता अगर हैं गगन विशाल
माँ धरती का वृस्तृत भाल
दोनों के संयुक्त करो से
हो शिशुओं का पालनहार
.
पिता हिमालय के शीर्ष शिखर
जिसे देख मन गर्वित हो
देवतुल्य राज इंद्र के जैसे
स्नेह की निस दिन वर्षा हो
.
चट्टान स्वरूपी ह्रदय कोमला
माँ निर्मल सोपान की धारा
हो कितनी भी राह विषम
दृढ़ता की जीवंत परिभाषा
.
भण्डार ज्ञान का मिला पिता से
माँ से संस्कृति की पहचान
धीरज, संयम मिला पिता से
माँ से शक्ति, स्वाभिमान
.
आकाश पटल को छूने को
विश्वास स्तम्भ दिए पिता ने
डगमग - डगमग पॉँव हुए तो
माँ ने अनुभवी पंख दिए
.
सर पर छत्र पिता का है
तो नरम बिछोना माँ का आँचल
नमन करूँ मैं मात पिता को
वरद हस्त रहे उनका सर पर

1 comment:

mukhraiyashalini said...

अति सुंदर भावपूर्ण रचना