Tuesday, September 11, 2018

मैं एक नदी हूँ




मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
निरन्तर बहना ही है मेरी प्रकर्ति
मत करना कोशिश ,लग मुझे बाँधने 
ना रह पाउंगी सिमट ,मैं एक घाट पर
है कर्म मेरा बस चलते रहना
पत्थरो के बीच , कंदराओं से होकर
उबाख खाबड़ रास्तों की मदमस्त नृत्यांगना
.
मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
नहीं एक जगह है मेरा ठौर ठिकाना
थिरकत पाँव ,चंचल प्रवर्ती
फैली हुयी ये वृस्तृत बाहें
रच बसने को कण कण मैं
फूट रहे हैं मधुकर चश्मे
अंतरघट के प्रांगण से
.
.
मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
जल प्रवाह का वेग समूचित
मिलता रहे गर,यूँही प्रतिदिन
हो जाउंगी एक रोज़ समाहित, सागर मैं
नहीं तो, संगृहीत हो अपने ही परिवेश मैं
सरोवर मैं परिवर्तित हो ,सूखी धरणी
मुरझे प्रसून , कुम्हले चेहरे हरषाऊँगी
.
.
मैं एक नदी हूँ बिना किनारे
बसते मुझमे कितने प्राण
सबके जीवन की अभिलाषा
प्रेम सुधा सोपान लिए
बरसत हूँ मेघा बनकर
मेरे जीवन का अभिप्राय यही है
नियति यही है ,पन्थ यही है
.
मैं एक नदी हूँ ..बिना किनारे। 

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