Saturday, May 23, 2020

अटल जिजीविषा


खिल जाते हैं गुलशाद पत्थरो में भी 
कुछ बीजों को तूफ़ान ही सैर कराते हैं 
दब कर किसी खंदक के पसीजे दिल में 
बे इरादन ही अंकुर पनप जाते हैं
अजीब करिश्मा है कुदरत का
प्रचंड सूरज की अग्नि से जहाँ
सारी वनस्पति मुंह लटका लेती हैं
ये ढीठ जाने कैसे आयुष पाते हैं
बवंडर के आवेश में हिचकोले खाते
लम्बे चौड़े दरख़्त भी धराशायी हो जाते हैं
पर बिना किसी ठौर -सहारे के भी
ये निर्लज ऐसे में भी मुस्काते हैं
हिल नहीं पाती है इनकी अटल जिजीविषा
नख शिख तक पानी मैं डूब डूब कर
नाग फनी उठा फिर तन जाते हैं
काँटों की खलिश से रक्त रंजित
अपने ही लहू से निखर जाते हैं
इनका कोई क्या बिगाड़ेगा
ये तो पैरो तले रुंद कर भी
एक से हज़ार हो जाते हैं 

2 comments:

Heart4Art22093 said...

जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबहो-शाम
कुछ यही कह जाते है
तभी तो अटल जिजीविषा कहलाते है

Heart4Art22093 said...

जीवन चलने का नाम
चलते रहो सुबहो-शाम
कुछ यही ये हमे दे जाते है
तभी तो अटल जिजीविषा कहलाते है