Monday, December 9, 2019

छोटे-छोटे पाँव





मखमली चादर मैं लिपटी, सोई कामिनी
उसके बच्चों की माँ और अर्धांगिनी
उत्कर्ष पद, गरिमामय वयक्तित्व 
समृद्ध परिवार , पारिवारिक अपनत्व
क्या कुछ नहीं है, पर ना जाने क्यों
एक कमी सी है, कोई तलाश है
ज़िन्दगी के पन्नो को उल्टा फड़फड़ाकर
विचारों पर जमी धूल को उड़ाकर
अतीत के कुँए मैं कूद पड़ा
यादों की बंद संदूकचियों मैं से
जाने किस मोती की तलाश मैं
.
दिसंबर की सर्द रातें और रेहड़ी पर की चाय
दोस्तों के साथ मटरगश्ती वाली ज़िन्दगी बेपरवाह
उफ़फ ! क्या दिन थे वो भी
बेखौफ जवानी के घमंड मैं झूमते
मस्ताने हाथियों के झुण्ड
कॉलेज की रंग बिरंगी तितलियाँ
मचलते भवरों का दिल
छतों की मुंडेर के आर पार
आँखों आँखों का वार
वो, सीमा थी,उसका एकतरफा प्यार
क्या वो कसक आज भी बाकी है ?
.
माँ की स्नेहभरी झांकी और बाबूजी की झिड़की
बालपन की नादानियाँ ,छोटी छोटी अभिलाषा
पतंग, कंचे, कागज़ की नाव
गुलेल से तोड़ते बेर और आम
नीम के पेड़ पर चढ़ अंडे की चोरी
मंडराते कौवों की कर्कश काँव - काँव
मास्टर जी की स्केल से पिटाई
साईकिल से पूरे शहर की घुमाई
वो जरा जरा सी बातों पर
कभी झगड़ा कभी खिलखिलाना
क्या वो हँसी कहीं खो गयी है ?
.
गहन तन्द्रा से जैसे होश मैं आया
प्रगति की सीढ़ियां चढ़ते चढ़ते
ज़मीन से कोसो दूर हो गया था
बाहें तो आसमान मैं फैला ली
पर धरती कहीं धसक गयी थी
आखिरी बार बच्चों के साथ
कब बैठा था याद नहीं
कामिनी के दिल की थाह ??
नहीं, अभी भी देर नहीं हुयी
आत्म मंथन से मिला संतुष्टि का राज
सच्चे सुख के छोटे-छोटे पाँव
.
--मंजरी
8th December 2019

1 comment:

shailu said...

बहुत सुन्दर मखमली चादर में लिपटी ....
मैन को छू लेने वाली पंक्तियाँ