Saturday, February 9, 2013

खत

सोचा , कि तुम्हे एक खत लिखूं 
कुछ लिखना शुरू किया 
तो लगा की क्या लिखूं 

मेरे अपने ?
नहीं ये नहीं लिख सकती 
तुम्हारे साथ कोई और है 
तुम मेरे हो ही कहाँ 

तुम आ जाओ?
नहीं, ये भी नहीं लिख सकती 
तुम्हारी मंज़िल कुछ और है 
तुम्हारा रस्ता ये कहाँ 

तुम्हारी याद में ?
नहीं,ये भी कैसे लिखूं 
तुम विचलित हो जाओगे 
तुम्हे उदास देख पाउंगी क्या 

असीम प्यार ?
ओह ! हाथ क्यों रुक गए 
कुछ लाज, कुछ जग की रुसवाई 
दूजे प्रेम को शब्दों की जरूरत क्या 

कोरा  कागज़ ही लिफ़ाफ़े मैं 
डाल  कर भेज दिया 
यही सोच कर  
कि , तुम तो मेरे कोरे पन्ने 
को भी देख कर जान जाओगे 
उसमे छुपे शब्दों का अर्थ... ....... 

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