Tuesday, September 27, 2016

ज़िद





रंग सारे तूने  नज़ारों में बिखेर कर 
बचे हुए काले रंग से मेरी ज़िन्दगी रंग  दी 

तू करता रह  स्याह इसे और भी ज्यादा 
मैं जल जल के इसे रोशन करती रहूंगी 

तू डालता रह पत्थर  राहों में रोज मेरे 
मैं जोड़ जोड़ उनको स्तम्भ बना लूंगी 

यही ज़िद है अगर तेरी अब मेरे खुदाया 
तो मैं भी अब तुझको शिकस्त दे के  रहूंगी 

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