Sunday, May 19, 2013

स्वरांजली



ह्रदय की हर एक शिरा  में 
अविरल बहती रस धारा हैं 
व्याकुल मन में पीर बढाती 
सुरों के इस लय ताल में 
मद मस्त थिरकती विद्युत गति से 
संगीत की ये स्वर लहरियाँ  हैं 

कभी मौन बनी किसी वेदना को 
विचलित सी संवेदना को 
हर एक भाव को शब्द देती 
स्वरों से सुसज्जित कर के 
कंठ से मुख तक आती 
ह्रदय की ये अनुभूतियाँ  हैं 

ह्रदय से ह्रदय के सेतु को 
कच्चे सूत से बांध कर 
जीवन का संचार फूंकती 
अव्यक्त व्रती का दर्पण बन 
ईश  का वंदन करने को 
अकुलाती ये स्वरांजलियाँ  हैं  ..

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