Thursday, May 24, 2007

बचपन ,जवानी और बुढ़ापा



अहम् की   देहलीज पर 
दम  तोड़ता बचपन 
अपने ही नीड में 
दौड़ने की होड़ से 

वक्त की मार झेलती 
अधमरी जवानियाँ 
मजबूरियों की जंग में 
ख़्वाबों के बदरंग से 

शून्यता में घूरता 
अपाहिज बुढ़ापा 
अपनों से शिकस्त में 
जीने की त्रस्त  से 


1 comment:

shaveta said...

bahut acha likha ha its too nice