Thursday, May 24, 2007

ज़िन्दगी


कल कमरे की सफाई से 
एक तस्वीर मिली पुरानी सी 
कुछ गर्द  झाड़ कर हाथों से 
टांग दी दीवार पर 
रौनक सी बढ़ी कमरे की 
और साथ ही........ 
कुछ रद्दो - बदल कर यूँही 
गुज़रती रही ज़िन्दगी हौले धीरे 

पुरानी किताब के पन्नो मैं दबी 
गुलाब की पत्तियां सूखी सी 
कुछ पानी डाल कर प्याले में 
सजा दी तिपाई पर 
खुशबु सी उडी कमरे में 
और साथ ही........ 
कुछ रद्दो - बदल कर यूँही 
गुज़रती रही ज़िन्दगी हौले धीरे 

कोने में पड़े साज़ के तारों को छेड़ कर 
एक लहर उठी धीमी सी 
कुछ बीते अफ़सानो की 
यादें दोहरा कर 
धुन सी छिड़ी कमरे में 
और साथ ही........ 
कुछ रद्दो - बदल कर यूँही 
गुज़रती रही ज़िन्दगी हौले धीरे 

3 comments:

yogendra said...

madam,aap to acchhi khasi shayar ho,kabhi bataya nahi aapne.good good keep it up.

Anonymous said...

kuch rad.do.badal kar yunhi guzarti rahizindgai hule dheere....waah kya kahen...bahot umda...bahot khoob...keep it u. Hope to see more gems from u...

charu said...

bahut khoob likha hai aapne