Sunday, May 27, 2007

तुम मानो या ना मानो


तुम चाहो या ना  चाहो
तुम्हारी राहों मैं खड़े
हम मुस्कुराते थे
तुम नज़रें झुकाते थे
शर्माते थे ,
घबराते थे। ...

तुम मानो  या ना  मानो
जो दिल्लगी थी हमारी
वो दिल की लगी है
एक बेचैन प्यास है
आरज़ू है ,
इंतज़ार है ....

तुम जानो या ना जानो
तुम्हारी जुदाई के ख्याल से
होश गुम  है
सासें रुकी  हैं
दीवानगी है ,
बेकसी है ......

तुम समझो या ना समझो 
हमारे बीच अब जो फासले हैं 
वो किस्मत की बात है 
जब इज़हार -ए -मोहब्बत करनी थी 
कभी तुम नहीं  थे ,
और कभी हम नहीं थे .....


1 comment:

♥Kคятнเk ∂ємσภ♥ said...

Bilkul matching hain in times :p
nice poem work...