Monday, May 28, 2007

चाँद की मंजूरी


खामोश सीली सी रात में 
खुमारी का आलम था
पीली छत पर छुई -मुई सी लड़की थी
बगल के रोशनदान से झांकता ;
सुरमई सा लड़का था
नज़रों का मिल- मिल कर उठना था , फिर झुकना था

उखड़ी सासें थी
बेताब दिल थे
बेख़ौफ़ धड़कने थी
मचलते अरमान थे

शरारत सूझी चाँद के मन में ,
और छिप गया बादलों  की ओट में
हॉल कर घबराती लड़की थी
इख्तियार से तसल्ली देता लड़का था
हिज़ाब में चेहरा  छुपाती लड़की थी
ख्वाबों को तस्लीम देता लड़का था

कुछ कसमें थी
कुछ मुरादें थी
बरसों के साथ की अनकही तहरीरें थी
खुदा के करम से एक होती तक़दीरें थी 


कुदरत के इस फरमान को चाँद ने
अपनी भी मंजूरी दे दी